रात और दिन दिया जले, मेरे मान में फिर भी अंधियारा है
जाने कहा है, ओ साथी, तू जो मिले जीवन उजियारा है
पग पग मान मेरा टोकर खाए, चाँद सूरज भी राह ना दिखाए
एयसा उजाला कोई मान में समाए, जिस से पिया क्या दर्शन मिल जाए
गहरा ये भेद कोई मूज़ को बताए, किसने किया हैं मुज़पर अन्याय
जिस कॅया हो दीप वो सुख नहीं पाए, ज्योत दिए की दूजे घर को सजाए
खुद नहीं जानू ढूँढे किस को नज़र, कौन दिशा हैं मेरे मान की डगर
कितना अजब ये दिल कॅया सफ़र, नदियाँ में आए जाए जैसे लहर
2 comments:
beautiful as usual!
jane kaha hai woh sathi
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