मिराज़-ए-ग़ज़ल | مراج - ئی - گجل

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मिराज़-ए-ग़ज़ल | مراج - ئی - گجل
(आशा भोसले और गुलाम आली | آشا بھوسلےاور گلام آل)

दर्द जब तेरी आता है तो | درد جب تیری آتا ہے تو
दायरे-ए-दिलकी रात में चराघ | دایرے- ئی - دلکی رات میں چراگھ
दिल धड़कने का सबब याद आया | دل دھڑکنےکا سبب یاد آیا
गये दिनों का सुराग लेकर | گیہ دنوںکا سراگ مسئلہ
हैरातों के सिलसिले सोज़-ए | ہےراتوں کےسلسلےسوج - ئی
करूँ ना याद मगर किस तरह | کروںنا یاد مگر کس طرح
नैनों तोसे लगे | نینوں توسے لگی
फिर सावन रुत की पवन | پھر ساون رت کی پون
रात जो तूने डीप भुजाए मेरे थे | رات جو تونےڈیپ بھجائی میرےتھی
रुदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए | رداد - ئی - موہببت کیا کہئی
सलोना सा सजन है और मैं हूँ | سلونا سا سجن ہے اور میںھون
यूँ सज़ा चाँद के छलका | یوںسزا چاند کےچھلکا




Live Concert At The Town Hall Kolkotta

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Pandit Bhimsen Joshi

1. Raag Miyan Malhaar
2. Raag Bhairavi

My Personal Choice amongs Many

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Ustaad Rashid Khan उस्ताद रशीद खान
In a story in several versions, it appears that Pandit Bhimsen Joshi said at one point, that Rashid Khan was the 'assurance for the future of hindustani vocal music'
The Rampur-Sahaswan gayaki (style of singing) is closely related to the Gwalior Gharana, which features medium-slow tempos, a full-throated voice and intricate rhythmic play. Rashid Khan includes the slow elaboration in his vilambit khayals in the manner of his maternal grand-uncle and also developed exceptional expertise in the use of sargams and sargam taankari (play on the scale).
He is also a master of the tarana like his guru but sings them in his own manner, preferring the khayal style rather than the instrumental stroke-based style for which Nissar Hussain was famous. There is no imitation of instrumental tone. His mastery of all aspects tonal variations, dynamics and timbre adjustment leave very little to be desired in the realm of voice culture.
His renderings stand out for the emotional overtones in his melodic elaboration. He says: "The emotional content may be in the alaap, sometimes while singing the bandish, or while giving expression to the meaning of the lyrics." This brings a touch of modernity to his style, as compared to the older maestros, who placed greater emphasis on impressive technique and skillful execution of difficult passages.


Raag Yaman राग यमन
Raag Rageshri राग रागेश्री
Raag Chhaayanat राग छायानट
Raag Desh राग देश
Raag Bihaag राग बिहाग
Raag Puriyaa राग पुरिया
Raag Shudh Kalyaan राग शुद्ध कल्याण
(Raag Shudh Kalyaan is a tribute to the Guru - Pt. Bhimsen Joshi by Shishya Ud. Rashid Khan)


जब भी किसी निगाह ने...

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मैं और मेरी तन्हाई

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आवारा है गलियों में मैं और मेरी तन्हाई
जायेण तो कहाँ जायेण हर मोड़ पे रुसवाई
मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरी तन्हाई

ये फूल से चेहरे हैं हंसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रास्ते
राहें भी तमाषयी राहें भी तमाशाई
मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरी तन्हाई

अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे
क़ातिल नज़र आती है दुनिया के हवा जैसे
रोटी है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई
मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरी तन्हाई

हर रंग में ये दुनिया सौ रंग दिखाती है
रोकर कभी हँसती है हंसकर कभी गाती है
ये प्यार की बाहेण हैं या मौत की अंगड़ाई
मैं और मेरी तन्हाई मैं और मेरी तन्हाई



मीच माझा एकटा

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त्या तिथे, पलिकडे, तिकडे

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लाखाची गोष्ट

त्या तिथे, पलिकडे, तिकडे, माझिया प्रियेचे झोपडे !

गवत उंच दाट दाट, वळत जाइ पायवाट
वळणावर अंब्याचे, झाड एक वाकडे...

कौलावर गारवेल, वाऱ्यावर हळु डुलेल
गुलमोहर डोलता, स्वागत हे केवढे !

तिथेच वृत्ति गुंगल्या, चांदराति रंगल्या
कल्पनेत स्वर्ग तो, तिथे मनास सापडे !